चीतावालान: जयपुर में यहां घर-घर पाले जाते थे चीते, मांस के साथ परोसा जाता था गुलकंद और पनीर

जयपुर :— देशभर में इन दिनों चीतें चर्चा का विषय बने हुए है और इनके विषय में हम कई प्रकार की नई जानकारियां भी देख पा रहे हैं. जो अब तक शायद लोगों को मालूम नहीं हुआ करती थी. वैसे तो देश में चीते अब वर्षों पहले ही पूरी तरह से लुप्त हो चुके थे और तकरीबन 70 साल पहले देश का आखरी चीता भी हमने खो दिया था लेकिन अब एक बार फिर चीतों की आबादी बहाल करने के लिए नाभि भी ऐसे और चीते गए हैं अभी देखना बाकी होगा कि क्या यह उचित है एक बार फिर देश में सीटों की संख्या में बढ़ोतरी कर पाएंगे या नहीं ?

बता दें कि चीतों के प्रजनन की सबसे सबसे बड़ी खासियत यह होती है कि अगर मादा चीता अपने आसपास की परिस्थितियों को खुद के अनूकूल को महसूस नहीं करती है तो वह प्रजनन नहीं करेगी. ऐसे में अगर इन अफ्रीकी चीतों की मादख चीता कूनो नेशनल पार्क की जलवायु के साथ घुलती मिलती नहीं है तो वह प्रजनन नहीं करेगी.

लेकिन आपको बता दें कि हमारे देश में यह परिस्थिति हमेशा से ऐसी नहीं थी. बल्कि एक जमाना तो ऐसा हुआ करता था कि यहां घर-घर चीते पाले जाते थे. विशेष तौर पर जयपुर के राजघराने में चीते पालने का खासा शौक था और प्राप्त जानकारी के अनुसार यहां अफगानिस्तान और ईरान मूल के चीते पाले जाते थे.

चीतों के लिए हुआ करती थी खास व्यवस्थाएं

जयपुर में इन चीतों को घरों में रखा जाता था और बड़ी-बड़ी अलमारियों में सुलाया जाता था. वहीं इनका मिजाज ठंडा रखने के लिए इन्हें मांस के साथ ही साथ गुलकंद और पनीर भी खिलाया जाता था. जयपुर के चीतों को महाराजा का खास राजदुलार मिलता था और आने वाले शाही मेहमानों के सामने इन चीतों को शिकार करने का खास डेमो भी दिया जाता था.

चीते पालने के लिए बसा दी गई अलग से कॉलोनी

चीते पालने का क्रेज यहां इस कदर था कि जयपुर में चीतेवालान नाम से एक अलग बस्ती बसा दी गई थी. जहां पर रहने वाले सभी लोगों का कार्य केवल चीतें पालना ही हुआ करता था और उसी अनुरूप इनकी कॉलोनी का नाम भी पड़ गया.

अंधाधुंध शिकार के चलते लुप्त हुए चीतें

लेकर शाही परिवार चीतों के शिकार करने का खासा शौक भी रखता था और समय के साथ इनकी प्रजनन क्षमता में भी काफी कमी देखी गई. जिसके चलते धीमे धीमे ये लुप्त होते गए. और 1940 में एक समय आया जब ये पूरी तरह से गायब हो गए.

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