हम सस्ते दाम और अपनी सहूलियत के लिए प्लास्टिक का उपयोग बेहिसाब करते हैं. प्लास्टिक बड़ी आसानी से उपलब्ध हो जाता है और यह चीजों को अन्य पदार्थों से ज्यादा बेहतरीन बनाकर रखता है इस वजह से हम किसी भी मामले में प्लास्टिक का उपयोग करने से हिचकिचातें नहीं है.
लेकिन यह पर्यावरण के लिए एक अभिशाप है. भारी कचरे की समस्या और पर्यावरण को हो रहे नुकसान के चलते अब राजस्थान राज्य में भी एक जुलाई से सिंगल यूज प्लास्टिक को बंद कर दिया गया है. ऐसे में अधिकतर लोग अब प्लास्टिक का सब्सिट्यूट ढूंढ़ने का प्रयास कर रहे हैं.
इसी विषय में राजधानी जयपुर में जब भास्कर टीम ने मार्केट का दौरा किया तो शहर का एक रेस्टोरेंट ऐसा ज्ञात हुआ जिसमें काफी समय से जूस इत्यादि सर्व करने के लिए ऑर्गेनिक गिलासों का प्रयोग हो रहा था. जो संतरे के छिलके से बने हैं. यह कप अपने आप में बेहद सुंदर और खास है क्योंकि इनका निर्माण फसल के कचरे से किया गया है.
आमतौर पर देखा जाता है कि चावल और गेहूं की फसल प्राप्त करने के बाद लोग उसके भूसे को खुले में फेंक देते हैं और जला देते हैं. जो पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पैदा करता है. लेकिन मुंबई के रहने वाले दो युवा निशिथ और अनुप्रिया ने ऐसे ही कुछ किसानों की सहायता से एक बेहद अलग और शानदार समाधान खोज निकाला.
दरअसल इन्होंने संतरे के छिलके, चावल और गेहूं की भूसी जो किसी भी प्रकार से प्रयोग में नहीं आती है, इनका प्रयोग करके इन्होंने कई ऐसे बर्तन तैयार किए जो प्लास्टिक का सब्सीट्यूट बन सकते हैं.फसल के इस कचरे को इन युवाओं ने सुंदर कटोरियों, प्लेट्स और गिलासों में बदला. जिनका प्रयोग जयपुर शहर में हो रहा है. यह इसलिए भी बेहद अहम है क्योंकि यह किसानों को उनकी फसल के कचरे का एक दाम मुहैया करवाता है. साथ ही यह पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर भी कारगर है.