शेर एक ऐसा प्राणी है जिसको देखते ही अच्छे अच्छों के पसीने छूट जाते हैं. चाहे कोई भी इंसान हो शेर के सामने कोई देखने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाता. लेकिन एक व्यक्तित्व है ‘पीराराम धायल’ जिनकी एक आवाज से सभी जानवर दौड़कर इन की गोद में आकर बैठ जाते हैं. चाहे हिरण हो या फिर शेर सभी जानवरों से इनकी एक ऐसी दोस्ती है कि यह इन्हें गोद में बिठाकर खाना खिलाते हैं.
आपको यह जानकर भी हैरानी होगी कि इन जानवरों के लिए पीराराम धायल ने अपने ढाई करोड़ की जमीन समर्पित कर दी है. तो आइए जानते हैं कि इनकी जानवरों से यह खास दोस्ती आखिर कैसे हुई ? कैसे पीराराम और इन जानवरों के बीच यह अनूठा रिश्ता बना?
मार्मिक दास्तान !
पीराराम ने बताया है कि यह साल 1995 की बात है जब वह सीआरपीएफ में जालंधर में नौकरी किया करते थे. किसी कारण के चलते उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी और वह जालौर जिले में अपने गांव देवड़ा आ गए. उन पर घर की कई जिम्मेदारियां थी और उन्होंने 1998 तक खेती बाड़ी का काम संभाला. इसके बाद ही उन्होंने सांचौर में टायर पंचर की अपनी एक दुकान खोली.
पीराराम कहते हैं कि मेरा गांव सांचौर से 40 किलोमीटर दूर बसा है और बीच में जंगल का कच्चा रास्ता आता था यहां बड़ी संख्या में हिरण, बंदर और खरगोश जैसे जानवरों को देखते थे. एक दिन मेरी आंखों के सामने ही बंदरों का एक झुंड रोड क्रॉस कर रहा था. तभी एक बाइक वाले ने उन्हें टक्कर मार दी और तीन बंदर वहीं घायल हो गए.
उनमें से एक मादा थी जिसके सीने से उसका 2 दिन का एक बच्चा लिपटकर दूध पी रहा था. मादा बंदर उसी वक्त मर चुकी थी लेकिन उसका बच्चा अपनी मां से लिपटा हुआ दूध पीता रहा. पीराराम कहते हैं कि यह पहली घटना थी जिसने उनके मन में जानवरों के लिए एक अपार स्नेह पैदा कर दिया.
इसके आगे पीराराम कहते हैं लेकिन ऐसे ही एक घटना दोबारा मेरे साथ हुई. जब मैं हर रोज की तरह गांव से सांचौर जा रहा था. तभी हिरण का एक झुंड गाड़ी से टकरा गया और एक मादा हिरण मौके पर ही मर गई. उसके आसपास ही उसका बच्चा घूम रहा था. मैं इसे देख कर उसे अपने साथ घर ले आया और मेरी पत्नी पारु देवी ने उसकी देखभाल करनी शुरू कर दी.
ऐसे करते-करते मेरे घर में दो से तीन हिरण हो गए और फिर मेरे मन में ख्याल आया कि यदि ऐसा होता रहा तो यह सभी मर जाएंगे. मेरे ही परिवार में एक महिला रिश्तेदार ने हिरण के बच्चे को अपना दूध पिला कर बड़ा किया. यह देख मुझसे रुका नहीं गया और मैंने इनको बचाने की मुहिम शुरू कर दी.
प्रतिदिन करते हैं वन्यजीवों पर हजारों रुपए ख़र्च
पीराराम ने बताया कि उसके बाद वह 1998 से लेकर 2008 तक एक संस्था से जुड़े रहे. इसके बाद उन्होंने जालौर के धामणा में एक एनजीओ के साथ जुड़कर रेस्क्यू सेंटर खोला. उनके यहां तकरीबन 350 हिरण के साथ मोर खरगोश और अन्य कई जानवर थे. लेकिन किसी वजह से यह रेस्क्यू सेंटर खाली करना पड़ा. इसके बाद पीराराम 2017 से 2020 तक वन विभाग से जुड़े रहे और उन्हीं के साथ मिलकर काम किया.
इस दौरान उन्होंने अपनी खुद की एक संस्था जंभेश्वर एनवायरमेंट एंड वाइल्ड सोसाइटी को भी रजिस्टर करवाया. यहां एक साल में उनके पास 200 से अधिक हिरण रेस्क्यू हुए जिसे वह बाद में राजसमंद के जंगलों में छोड़ कर आ गए. वहीं पीराराम बताते हैं कि साल 2014 में उन्हें 1 साल की ट्रेनिंग के लिए भेजा गया. जहां उन्होंने माचिया सफारी पार्क में ट्रेनिंग की थी. यहां उनके कैलाश नाम के एक शेर के बच्चे के साथ दोस्ती हो गई. उनकी दोस्ती ऐसी हुई कि वह जब उनके कमरे में जाते हैं तो वह उनके साथ खेलने लगता.
कर दी खुद की संपत्ति दान
पीराराम का सफर यहीं खत्म नहीं हुआ जब उन्होंने अपनी खुद की एक संस्था रजिस्टर करवाई तो जमीन को लेकर उन्होंने संकट महसूस किया. ऐसे में उन्होंने देवड़ा गांव में अपनी 25 बीघा जमीन इसके लिए समर्पित कर दी जिस की वर्तमान कीमत तकरीबन ढाई करोड़ रुपए है.
पीराराम के द्वारा 2013 में ग्रामीणों के सहयोग से धामणा में अमृता देवी उद्यान की शुरुआत की गई जहां उन्होंने तकरीबन 7 सालों तक हिरण और अन्य वन्यजीवों की देखभाल की. इसके बाद उन्होंने जुलाई 2021 में अपने पैतृक गांव देवड़ा में अपनी पुश्तैनी जमीन पर खुद का एक रेस्क्यू सेंटर शुरू किया. जहां वर्तमान में 52 मोर, 46 चिंकारा, 5 काले हिरण, 1 चितल, 1 नीलगाय और 6 खरगोश है.