धींगा गवर त्यौहार : यूं तो हमारे देश में सैकड़ों त्योहार मनाए जाते हैं. साल भर किसी ना किसी रूप में हम त्योहारों का सेलिब्रेशन करते ही रहते हैं. लेकिन आज हम एक ऐसे त्योहार के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं जो इतना अनोखा है कि लड़कियां यहां लड़कों को दौड़ा-दौड़ा कर डंडे मारती है. अवश्य ही आपने इस तरह के त्योहार के बारे में कभी नहीं सुना होगा. तो आइए चर्चा करते हैं इसके बारे में विस्तार से.
मूल रूप से यह जोधपुर में मनाए जाने वाला एक त्यौहार है. जिसमें लड़कियां लड़कों की सुताई करती है. इसका उद्देश्य महिला सशक्तिकरण को लेकर है. बता दें कि त्योहार का नाम ‘धींगा गवर’ है. आपको बता दें कि इस त्यौहार का आयोजन न केवल जोधपुर में बल्कि मेवाड़ में भी होता है. इससे पहले आपने बरसाने की बेंतमार होली के बारे में सुना होगा और यह उससे मिलता जुलता एक त्योहार ही है.
किस प्रकार मनाया जाता है धींगा गवर?
इस फेस्टिवल में महिलाएं कुंवारे लड़कों को दौड़ा-दौड़ा कर डंडा मारती है. यानी घरों की चारदीवारी से बाहर निकलकर महिलाएं पुरुषों को डंडे मारती है. इसके पीछे यह मान्यता है कि अगर डंडा किसी लड़के पर लगता है तो उसकी शादी जल्दी हो जाती है. इस त्यौहार को बेंतमार गणगौर के तौर पर भी जाना जाता है.
मारवाड़ में सालों पुरानी यह मान्यता है कि इन धींगा गवर के दर्शन पुरुष नहीं करते हैं. क्योंकि उस समय ऐसा माना जाता था कि जो भी पुरुष धींगा गवर के दर्शन कर लेता था उसकी मृत्यु हो जाती थी. हालांकि समय के साथ यह मान्यता पूरी तरह से बदल गई है और पुरुष भी इस फेस्टिवल में शामिल होने लगे हैं.
पहले किस तरह से मनाया जाता था त्यौहार?
पहले ऐसा माना जाता था कि धींगा गवर के दर्शन पुरुष नहीं करते हैं. क्योंकि जो भी इनके दर्शन कर लेता था उनकी मृत्यु जल्दी हो जाती थी. ऐसे में धींगा गवर की पूजा करने वाली सुहागिने अपने हाथ में बेंत या डंडा लेकर आधी रात के बाद गवर के साथ निकलती थी.
पूरे रास्ते यह महिलाएं गीत गाते हुई जाती थी जिससे आसपास के पुरुषों को पता चल जाता था कि महिलाएं धींगा गवर त्यौहार के लिए निकल चुकी है. धीमे धीमे अब यह मान्यता पूरी तरह से बदल गई है और अब ऐसा माने जाने लगा है कि लड़का अगर महिला से डंडा खाता है उसका विवाह जल्दी हो जाता है.
क्या है धार्मिक महत्व ?
इस त्यौहार के साथ 16 अंक का सुंदर संयोग जुड़ा हुआ है. धींगा गवर मेला गवर माता की पूजा हेतु 16 वें दिन मनाया जाता है. यहां महिलाएं 16 दिन तक उपवास करती है फिर सोलह सिंगार करके धींगा गवर माता के दर्शन करने के लिए निकलती है. इस दौरान जो भी महिलाएं 16 व्रत धारी होती है उनकी बांह पर 16 गांठों वाला पवित्र सूत बंधा हुआ होता है. जिसे वे 16 वें दिन उतारकर गवर माता की बांह पर बांध देती है. और इसके पीछे यह मान्यता है कि इस जन्म और अगले जन्म में वे अखंड सौभाग्यवती रहे.