चीता वाला मोहल्ला : राजस्थान के इस गाँव में गाय भैंस से ज्यादा पाले जाते थे चीते, लेकिन…

जयपुर / राजस्थान ; चीता – देश में चीतों को अब विलुप्त प्रजातियों में से एक घोषित कर दिया गया है. यानी कि हमारे देश में खुद का एक भी चीता मौजूद नहीं है और तकरीबन 70 साल हो गए जब इसकी कोई भी बढ़ोतरी नहीं देखी गई है.

जिसके चलते हाल ही में तकरीबन 70 वर्षों बाद मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिवस पर विशेष आठ चीजों को लाया गया है. प्रधानमंत्री जन्मदिन विशेष पर इन चीतों को राज्य मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा गया है. बता दें कि इस नेशनल पार्क में प्रधानमंत्री ने तीन चीतों को छोड़ा है. जिसका लाइव टेलीकास्ट में किया गया था.

वाकई यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम एक महत्वपूर्ण प्रजाति चीता का संरक्षण नहीं कर पाए और हमें विदेश से इन्हें बुलाना पड़ा ! लेकिन क्या आप जानते हैं हमारे देश में एक समय ऐसा भी था जब कई इलाकों में भारी संख्या में चीतों को पाला जाता था.

ऐसा ही एक इलाका था चीतावालान, जिसके लिए कहा जाता है कि आज से तकरीबन 100 साल पहले इस इलाके में गाय, भैंस और पालतू कुत्तों की तरह चीतों को पाला जाता था. बताया जाता है कि राजस्थान की राजधानी जयपुर में स्थित यह मोहल्ला शहर के रामगंज बाजार के पास स्थित है और यहां तकरीबन 100 साल पहले के इतिहास पर अगर नजर डालें तो लोग यहां चीतों को पालतू कुत्तों की तरह बांध कर रखते थे.

उस वक्त यहां चीतों को सड़कों पर लिए घूमना बेहद आम बात हुआ करती थी. इस मोहल्ले में बसने वाले अधिकतर लोग दूसरे राज्यों के थे और राजघराने ने इस मोहल्ले को बसाया था. यहां सभी शिकारी परिवार से थे और वे राजघराने के लिए चीतें पालते थे और उनके साथ शिकार पर जाते थे.

राज घरानों के लिए विशेष अफ्रीका और इरान से लाए जाते थे चीतें

इस विषय में कहा जाता है कि जयपुर स्थित चीतावालान मोहल्ला कई साल पुराना है और राजघराने के लिए इस जगह पर अफ्रीका और इरान से विशेष चीतों को लाया जाता था. उनकी देखभाल हेतु ही इन शिकारी परिवारों को यहां बाशिंदा बनाया गया था. यह लोग चीतों का प्रशिक्षण करते थे और राजघरानों के साथ शिकार पर जाते थे.

अंधाधुंध शिकार के चलते विलुप्त हो गए चीते?

लेकिन समय के साथ ही साथ भारी-भरकम शिकार के चलते इन चीतों की संख्या बेहद कम हो गई. साथ ही कुछ लोगों का यह भी कहना है कि शिकार के साथ ही साथ चीतों का जनन उस अनुपात में नहीं हुआ जितना यह आवश्यक था. यही कारण रहा कि कुछ ही सालों में यहां सैकड़ों से 2–4 चीते ही बच सके और समय के साथ उनकी भी मौत हो गई.

जिसके बाद से ही यहां चीते लगभग खत्म हो गए लेकिन यहां रहने वाले लोग आज भी शब्द चीतावालान का प्रयोग करते हैं. और उनके राशन कार्ड, आधार कार्ड समेत कई आवश्यक दस्तावेजों पर उनके स्थाई पत्ते के रूप में यही नाम लिखा होता है.

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