राजस्थान : आपने अब तक गरमा गरम चासनी वाली जलेबी और इमरती का स्वाद जरूर चखा होगा लेकिन क्या आपने कभी मुरक्के का नाम सुना है ? हो सकता है यहां कई लोगों ने इसका नाम पहली बार सुना हो! लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जो इससे अच्छी तरह से रूबरू है. खोलते देसी घी से तैयार होने वाली यह खास मिठाई साल में केवल 20 दिन बनती है.
जो दशहरा से दीपावली तक बनती है. लेकिन इसकी डिमांड इतनी ज्यादा होती है कि यहां एक साथ 1000 दुकानों का माल भी कम पड़ जाता है. यह खास मिठाई बनती है राजस्थान के भीलवाड़ा के कोटडी में, जिसे कोटडी के फेमस मुरक्के के तौर पर जाना जाता है. यह एक ऐसी रेसिपी है जिसे पहली बार देखने से हम कंफ्यूज हो जाते हैं कि यह जलेबी है या इमरती! लेकिन असलियत में यह कुछ और ही है.
और यह इस एरिया में इतनी फेमस है कि दीपावली के दिन महालक्ष्मी को इसी मिठाई का भोग लगता है. बता दें कि यह मिठाई तकरीबन 100 साल से तैयार हो रही है जिसके गुजराती से लेकर मराठी लोग भी दीवाने हैं. इसकी खास बात यह भी है कि यह दिखने में भले ही जलेबी जैसी दिखती है लेकिन जब इसको स्वाद चखते हैं तो समझ में आता है कि यह कुछ अलग है.
यह मुरक्का है जो मैदे से नहीं बल्कि उड़द की दाल से तैयार होते हैं. हल्की सर्दी की दस्तक के साथ ही इसका स्वाद जुबान पर चढ़ने लगता है और इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि महज 20 दिन तक यहां इसके एक हजार से ज्यादा काउंटर लग जाते हैं. यूं तो आपको बाकी मिठाईयां पूरे साल मिल जाते हैं लेकिन मुरक्के आपको केवल विजयदशमी से दीपावली के दौरान ही मिलते हैं.
क्यों केवल 20 दिन तक ही होता है मुरक्के का प्रचलन ?
यहां सोचने वाली बात है कि जब यह मिठाई इतनी फेमस है तो इसका उत्पादन केवल 20 दिन तक ही क्यों? इस विषय में अगर हम यहां के भौगोलिक क्षेत्र को देखें तो इस दरमियान यहां उड़द की दाल का उत्पादन काफी मात्रा में होता है. और इस सीजन में उड़द की दाल लेना काफी फायदेमंद भी होता है. इसी के चलते यहां केवल दशहरा से दीपावली तक ही इसे बनाया जाता है. और गोवर्धन पूजन के साथ ही इस मिठाई का प्रचलन भी कम हो जाता है.