मौसम की भविष्यवाणी करने के लिए मौसम विभाग कई तरह के उपकरणों की मदद से टेंपरेचर, ह्यूमिडिटी और हवा की रफ्तार के आंकड़े जुटाता है. इन आंकड़ों का बाद में एनालिसिस किया जाता है. इसके बाद ही किसी प्रकार की घोषणा की जाती है ! तथा भारी बारिश की स्थिति में अलर्ट जारी किया जाता है कि मानसून कैसा होगा, बारिश कैसी रहेगी! कहां तेज होगी और कहां हल्की होगी ?
यह तो हुई मौसम विभाग की तकनीकों के बारे में बातचीत. लेकिन राजस्थान के अपने भी कुछ लोकल मौसम विभाग है जहां से हर साल लोकल मौसम विभाग के वैज्ञानिक देसी टोटके से मौसम की भविष्यवाणियां करते हैं. यहां हर जिले में लोकल एक्सपोर्ट्स का मानसून का मिजाज जाने का अपना तरीका है.
जहां भीलवाड़ा में मटकी में पानी डालकर इसका अंदाजा लगाया जाता है. वहीं डूंगरपुर में गायों की रेस करा कर जाना जाता है कि कितनी बारिश होगी ! इसी तर्ज पर पाली में टिटहरी के अंडे से मानसून का आकलन किया जाता है. हालांकि इन चीजों को कोई भी वैज्ञानिक आधार नहीं है लेकिन फिर भी लोकल लोग इन टोटकों पर बेहद विश्वास करते हैं.
आइए जानते हैं कि कौन से जिले में बारिश की संभावना बताने के लिए कौन सी प्रक्रिया अपनाई जाती है ?
पाली :– यह किसान टिटहरी के अंडे से बारिश का अनुमान लगाते हैं. जैसे कि यदि टिटहरी ने तीन अंडे दिए हैं तो 3 महीने बारिश का अनुमान लगाया जाता है. यदि 4 दिए हैं तो 4 महीने तक बारिश. जितने अंडे खड़े होते हैं उतने महीने तेज बारिश की संभावना मानी जाती है और जितने अंडे बैठे होते हैं उतने महीने धीमी बारिश की संभावना जताई जाती है.
बाड़मेर :– यह पांच मिट्टी के कुल्हाड़ों का नाम जेठ, आषाढ़, सावन, भादो और आसोद रखा जाता है. इन कुल्हाड़ों में समान मात्रा में पानी भरा जाता है. पानी के दबाव में जो कुल्हड़ सबसे पहले फूट जाता है उसी महीने बारिश का शगुन माना जाता है.
भीलवाड़ा :– भीलवाड़ा में लोग नवरात्र के अंतिम दिन देवी-देवताओं के नेजे लेकर निकलते हैं. तालाब में भक्त अपने सिर पर मटकी रखकर डुबकी लगाते हैं. एक डुबकी में मटकी में जितना पानी भरता है उससे अनुमान लगाया जाता है कि इस बार कितनी बारिश होगी!
बीकानेर :– बीकानेर में मानसून की भविष्यवाणी के लिए ज्योतिष गणित भी लगाया जाता है. इसका आकलन करने के लिए सूर्य और शनि की स्थिति को देखा जाता है. इस वर्ष के लिए जानकारों ने कहा है कि इस बार 22 जुलाई से 23 अगस्त तक तेज बारिश होगी.