जब भी राजस्थान राज्य का जिक्र होता है तो लोगों के जहन में चिलचिलाती गर्मी, उड़ती रेत और धोरों के बीच चलते हुए ऊंट उतर आते हैं. राजस्थान से बाहर रहने वाले अधिकतर लोगों के दिमाग में यही तस्वीर उभरकर आती है. लेकिन यह पूरी सच नहीं है. हालांकि पश्चिमी राजस्थान के परिपेक्ष में यह बात कहीं ना कहीं ठीक है.
लेकिन इसके अलावा भी राजस्थान में कई ऐसी जगह है जो कई मायनों में कश्मीर से भी कुछ कम नहीं. आज एक ऐसे ही जगह के बारे में हम चर्चा करने जा रहे हैं जिसका नाम है गोराम घाट. आपको बता दें कि यह जगह उदयपुर से 130 किलोमीटर दूर संभाग के राजसमंद जिले में आती है. मारवाड़ के पाली जिले की सीमा लग जाती है.
यही वजह है कि यहां जोधपुर की तरफ से भी भारी मात्रा में पर्यटक आते हैं और मेवाड़ की तरफ से भी. यह गोराम घाट हिल दिखने में इतनी खूबसूरत है कि आपको कश्मीर की वादियों की फीलिंग आती है. यहां आपको ऊंची ऊंची पहाड़िया, घनी हरियाली, बादलों का डेरा और झरने देखने को मिलेंगे. यह जगह फोटोग्राफी पॉइंट के हिसाब से भी बेहद शानदार है.
आप तस्वीरो में देख सकते हैं कि ट्रेन के जरिए यहां कितनी भारी मात्रा में पर्यटक इस जगह को देखने के लिए उमड़े हैं! आपको बता दें कि इस जगह पहुंचने के लिए ट्रेन के अलावा अन्य कोई साधन नहीं है और यहां जाने का सबसे अच्छा समय अगस्त महीने से अक्टूबर महीने तक का माना जाता है. क्योंकि इस महीने में खासकर बरसात होती है जिसके कारण यहां चारों तरफ हरियाली छा जाती है जो प्राकृतिक नजारों को कहीं हद तक खूबसूरत बना देते हैं.
इसके अलावा इस मौसम में बरसात के साथ हल्की सर्दी का कंबीनेशन भी शानदार होता है जो हमारी यात्रा को सबसे अच्छा बना देता है. तस्वीरों के माध्यम से आप जो भीड़ देख पा रहे हैं यह राजसमंद जिले के देवगढ़ कामलीघाट स्टेशन की है. जहां से सैकड़ों की संख्या में लोग गोराम घाट जाने के लिए ट्रेन से पहुंचे. यहां ट्रेन के अंदर तो भीड़ देखी जा सकती है लेकिन लोग तो इसके ऊपर भी चढ़े हुए हैं.
कई बार तो हालात ऐसे भी हो गए कि यहां पुलिस तक बुलानी पड़ी। आपको बता दें कि यहां पहुंचने के लिए अभी भी वर्षों पुरानी मीटर गेज लाइन ही बसी हुई है. हालांकि खास बात यह भी है कि अगर आप ट्रेन के किसी भी डिब्बे में बैठे हैं तो आपको ट्रेन के दोनों छोर से इस के खूबसूरत नजारे आसानी से दिख जाएंगे. लेकिन अगर आप गोराम घाट घूमने के लिए जाते हैं तो आपको शाम के समय ही दूसरी ट्रेन में बैठ कर आना पड़ता है क्योंकि यहां रात में रुकने के लिए कोई भी साधन उपलब्ध नहीं है.